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जीवन दायनी नदियों की व्यथा।

मानव ने जब संघटित होकर रहना प्रारम्भ किया, तो उसने नदियों के आंचल में शरण ली, क्योंकि वहां जीवन का आधार जल सुगमता से प्राप्त हुआ। जैसे-जैसे मानव ने समाज के रूप में विकसित होना प्रारम्भ किया तो ये ही नदियां सभ्यताएं, संस्कृति, बोली एवं भाषाओं की पोषक बनी। समाज से गांव, गाँवो से शहर और शहरो से देश प्रविर्तित होते चले गये, मगर किसा का महत्व कम नहीं हुआ, तो वो है नदियों का। धीरे-धीरे मानव ने अपने विकास को गति देना प्रारम्भ किया, तो उसने जीवन की अन्य अवश्यकाओं, भौतिकवादी सविधाओ को प्राप्त करने की दौड़ में नदियों की उपेक्षा करना प्रारम्भ कर दिया। मानव यह भूल गया की नदियां जो हमारे जीवन का आधार रही है और भविष्य में रहेंगी, साथ ही साथ जिन नदियों ने हमे अपना नाम दिया, पहचान प्रदान की, उनके बिना जीवन सम्भव नहीं है। नदियों को हमने कूड़ा घरो में तब्दील कर दिया, भारतीय संस्कृति में नदियों को मां कहा जाता है, उन्ही को हमने प्रदूषित किया। संभवतः आने वाले समय में ये ही मानव की सबसे बड़ी भूल सिद्ध होगी। आज के परिदृश्य में अगर भारत की बात की जाय तो देश की सभी नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। जिस प्रकार से उत्तर भारत में आज यमुना मात्र बरसाती नदी बन कर रह गई है, उसी प्रकार मां गंगा को व्यवस्थाएं बांधो में बांध कर उसकी हत्या करने पर तुली हुई है। मां गंगा और यमुना में होता अवैध खनन आज सफेद-पोश अपराधियों का सबसे पसंद का काम हो गया है, वैसे यह कार्य बिना सरकारों की मोन सहमति के संभव नहीं। विगत 10 वर्षो से मां गंगा के लिए नदी प्रेमियों ने 3 बलिदान भी दिये है, जिसमे इस देश के जाने माने पर्यावरण विशेषज्ञ और देश के पहले पर्यावरण विज्ञान में आई.आई. टी. रुड़की एवं केलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले से शिक्षा प्राप्त प्रोफेसर जी डी अग्रवाल जी (स्वामी सानंद जी) ने 111 दिन के आमरण अनशन के बाद मां गंगा के लिए शहदत दी। साथ ही साथ स्वामी गोकुलानंद, स्वामी निगमानंद जी ने भी मां गंगा के लिए अपने प्राण त्याग दिए। युवा साध्वी पद्मावती, ब्रह्मचारी दयानंद सरस्वती, ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के साथ-साथ इन के गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ने सब के साथ कुल मिलाकर 61 बार अनशन किया, मगर परिणाम वहीं ढाक के तीन पात, न सरकारों ने सुनना उचित समझा और न हीं मीडिया ने विशेष महत्व दिया और रही बात समाज की तो वह अपनी मस्त चाल से जिंदगी गुजरता जिये जा रहा है। ये किसी विडंबना है कि स्विस की ग्रेटा थन्बर्ग जिसने अपने देश की संसद के सामने एक दिन का सत्याग्रह किया और उसकी आवाज को पुरे विश्व के साथ-साथ यूनाइटेड नेशन ने भी सुना, मगर युवा साध्वी पद्मावती ने मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये 100 दिन से ज्यादा सत्याग्रह किया, उसको सम्भवतः गंगा के अंचल में रहने वाले 45 करोड़ लोगो में से 0.1% से ज्यादा नहीं जानते होंगे। दक्षिण भारत में गोदावरी, कावेरी का भी हाल गंगा यमुना जैसा ही है। जिस प्रकार से आंध्रप्रदेश ने गोदावरी नदी पर गायत्री प्रोजेक्ट बना कर नदी के प्राकृतिक स्वरूप को बदला है, वह आने वाले समय में आंध्रप्रदेश और तेलांगना प्रदेश के बीच जल विवाद को जन्म देगा। जिस प्रकार कावेरी जल पर कर्नाटक और तमिलनाडु प्रदेशों के मध्य लंबे समय से लोगो में हिंसक विवाद का कारण बना हुआ है। आज नदियों के जो हाल है, उन सब के जिम्मेदार हम खुद है। सरकार और समाज की कोई नदियों के प्रति स्पष्ट नीति है और न ही जिम्मेदारी। अगर आज हम नहीं संभले तो आने वाला समय भयानक होगा, साथ ही आने वाली पीढ़ी को हम कोई जवाब नहीं दे सकेंगे।

मानव ने जब संघटित होकर रहना प्रारम्भ किया, तो उसने नदियों के आंचल में शरण ली, क्योंकि वहां जीवन का आधार जल सुगमता से प्राप्त हुआ। जैसे-जैसे मानव ने समाज के रूप में विकसित होना प्रारम्भ किया तो ये ही नदियां सभ्यताएं, संस्कृति, बोली एवं भाषाओं की पोषक बनी। समाज से गांव, गाँवो से शहर […]

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